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ZARURI NEWS |
1. प्रस्तावना
भारत की विदेश नीति हमेशा से बहुपक्षीय रही है। बदलते अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में भारत लगातार ऐसे मंचों की तलाश करता रहा है जो उसकी आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी प्राथमिकताओं को आगे बढ़ा सके। इसी क्रम में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मंच साबित हो रहा है।
2025 में चीन में होने जा रहा SCO शिखर सम्मेलन कई दृष्टिकोणों से ऐतिहासिक है। इसका सबसे बड़ा कारण है – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सात साल बाद चीन यात्रा। यह सिर्फ एक सम्मेलन में भागीदारी नहीं बल्कि बदलते वैश्विक समीकरणों के बीच भारत की रणनीति और कूटनीतिक ताक़त का प्रदर्शन है।
2. SCO की अहमियत और भारत का जुड़ाव
SCO की स्थापना 2001 में हुई थी और इसका मूल उद्देश्य था – सीमा सुरक्षा, आतंकवाद निरोधक सहयोग और क्षेत्रीय स्थिरता। धीरे-धीरे यह मंच आर्थिक सहयोग और ऊर्जा साझेदारी की दिशा में भी बढ़ा।
भारत 2017 में SCO का स्थायी सदस्य बना। इस संगठन में चीन, रूस, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान जैसे देश शामिल हैं। कुल मिलाकर SCO लगभग 3 अरब आबादी को कवर करता है और इसे एशिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन माना जाता है।
भारत के लिए यह इसलिए भी अहम है क्योंकि यह मंच चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के साथ भी सीधा संवाद का अवसर देता है।
3. पीएम मोदी की 7 साल बाद चीन यात्रा का महत्व
प्रधानमंत्री मोदी आख़िरी बार 2018 में चीन गए थे। उसके बाद गलवान संघर्ष, डोकलाम विवाद और LAC पर तनाव ने दोनों देशों के रिश्तों को ठंडा कर दिया। ऐसे में सात साल बाद पीएम मोदी का चीन जाना एक संकेत है कि भारत रिश्तों को बेहतर बनाने के लिए कूटनीति को मौका देना चाहता है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह यात्रा सिर्फ औपचारिक नहीं होगी, बल्कि इसमें भारत-चीन के बीच व्यापार, ऊर्जा और सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर ठोस चर्चा होगी।
4. भारत की ऊर्जा ज़रूरतें (नया सेक्शन – विस्तार से)
भारत आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है। हमारी अर्थव्यवस्था की तेज़ी से बढ़ती गति और 1.4 अरब की आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ऊर्जा सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा है।
भारत अपनी खपत का लगभग 85% तेल आयात करता है।
रूस, इराक, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात भारत के लिए सबसे बड़े सप्लायर हैं।
हाल के वर्षों में रूस से सस्ता क्रूड मिलने के कारण भारत ने अपने आयात को रूस की ओर शिफ्ट किया है।
SCO की भूमिका
SCO देशों में रूस और मध्य एशिया ऊर्जा संसाधनों से भरपूर हैं। गैस पाइपलाइन प्रोजेक्ट्स, कोयला और न्यूक्लियर ऊर्जा जैसे विकल्प भी भारत के लिए खुले हैं। भारत इस मंच का उपयोग अपनी ऊर्जा आपूर्ति को विविध बनाने और सुरक्षित करने के लिए कर सकता है।
क्यों ज़रूरी है?
अमेरिका और पश्चिमी देशों का दबाव है कि भारत रूस से आयात कम करे। लेकिन वास्तविकता यह है कि भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए रूस और मध्य एशिया जैसे स्रोतों की ज़रूरत है। SCO भारत को यह बैलेंस साधने का मौका देता है।
5. वैश्विक व्यापार और एशियाई ब्लॉक की उभरती ताक़त (नया सेक्शन – विस्तार से)
SCO अब सिर्फ सुरक्षा मंच नहीं बल्कि एक संभावित आर्थिक ब्लॉक बनता जा रहा है। चीन की ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI)’ हो या रूस का ‘यूरो-एशियन इकोनॉमिक यूनियन’ – दोनों का मकसद है एशिया को आपस में जोड़ना और पश्चिम पर निर्भरता घटाना।
भारत के लिए अवसर
बाज़ार तक पहुँच: SCO देशों में 3 अरब लोग रहते हैं, जो भारत के लिए एक बड़ा बाज़ार है।
व्यापार मार्ग: अगर भारत मध्य एशिया से जुड़ता है, तो उसे नए व्यापारिक रास्ते और लॉजिस्टिक विकल्प मिलेंगे।
निवेश: ऊर्जा, बुनियादी ढाँचे और टेक्नोलॉजी में नए निवेश भारत को आकर्षित कर सकते हैं।
संतुलन की चुनौती
हालाँकि, भारत BRI का हिस्सा नहीं है क्योंकि उसके कई प्रोजेक्ट पाकिस्तान-ओक्यूपाइड कश्मीर से होकर गुजरते हैं। लेकिन भारत वैकल्पिक प्रोजेक्ट्स जैसे इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) पर काम कर रहा है, जिसमें ईरान और रूस अहम भूमिका निभाते हैं।
वैश्विक असर
अगर SCO सही मायनों में आर्थिक ब्लॉक बनता है, तो यह अमेरिका और यूरोप की आर्थिक पकड़ को चुनौती दे सकता है। भारत के लिए यह एक रणनीतिक विकल्प होगा – यानी पश्चिम पर निर्भरता कम करना और एशिया में नई भूमिका निभाना।
6. आतंकवाद विरोधी एजेंडा और भारत की भूमिका (नया सेक्शन – विस्तार से)
SCO की सबसे अहम उपलब्धियों में से एक है रीजनल एंटी-टेररिज़्म स्ट्रक्चर (RATS)। इसका मुख्यालय उज्बेकिस्तान के ताशकंद में है और इसका मकसद है –
आतंकवाद
अलगाववाद
और चरमपंथ से लड़ना।
भारत की चिंता
भारत लंबे समय से सीमा पार आतंकवाद का शिकार रहा है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान से जुड़ी गतिविधियाँ सीधे भारत की सुरक्षा को प्रभावित करती हैं। SCO में शामिल होकर भारत इन मुद्दों को एक बड़े क्षेत्रीय मंच पर उठा सकता है।
क्यों महत्वपूर्ण है?
भारत को पाकिस्तान और चीन जैसे देशों के साथ बैठकर आतंकवाद पर चर्चा करने का अवसर मिलता है।
यह मंच भारत को अपने अनुभव साझा करने और आतंकवाद विरोधी प्रयासों में योगदान देने का अवसर देता है।
मध्य एशिया में आतंकवाद और चरमपंथ की बढ़ती गतिविधियाँ भारत की सुरक्षा के लिए भी खतरा बन सकती हैं। SCO सहयोग से भारत इस खतरे से सामूहिक रूप से निपट सकता है।
7. भारत-चीन रिश्तों की चुनौतियाँ
हालाँकि पीएम मोदी की यात्रा उम्मीदें जगाती है, लेकिन चुनौतियाँ कम नहीं हैं। LAC पर विवाद, व्यापार में असंतुलन और चीन की आक्रामक विदेश नीति भारत के लिए चिंता का विषय हैं।
फिर भी, दोनों देश जानते हैं कि स्थिर रिश्ते उनके लिए फायदेमंद हैं। SCO मंच भारत को चीन के साथ संवाद जारी रखने का अवसर देता है।
8. भारत-रूस संबंध और रणनीतिक संतुलन
भारत और रूस का रिश्ता दशकों पुराना है। रक्षा, ऊर्जा और अंतरिक्ष के क्षेत्र में रूस भारत का अहम साथी रहा है।
आज जब अमेरिका और पश्चिमी देश रूस पर प्रतिबंध लगा रहे हैं, भारत एक ‘संतुलनकारी’ भूमिका निभा रहा है। SCO इस संतुलन को बनाए रखने के लिए भारत के लिए उपयुक्त मंच है।
9. अमेरिका का दबाव और भारत की कूटनीतिक स्वतंत्रता
अमेरिका चाहता है कि भारत चीन और रूस से दूरी बनाए और पूरी तरह उसके साथ खड़ा हो। लेकिन भारत की नीति ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ पर आधारित है।
भारत न तो पूरी तरह अमेरिका का साथ छोड़ सकता है, न ही रूस और चीन को नज़रअंदाज़ कर सकता है। यही संतुलन भारत की विदेश नीति की ताक़त है और SCO इसमें मददगार है।
आने वाले समय में SCO भारत के लिए कई अवसर ला सकता है –
ऊर्जा सुरक्षा
क्षेत्रीय व्यापार
आतंकवाद विरोधी सहयोग
सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान
10. भविष्य की संभावनाएँ और भारत की भूमिका
भारत की सॉफ्ट पावर जैसे योग, आयुर्वेद और आईटी भी SCO देशों में लोकप्रिय हो सकते हैं।
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