नीलगिरी को हाई लैंडस्लाइड रिस्क ज़ोन घोषित

 

ZARURI NEWS

 

लेखक विशेष | चेन्नई / नीलगिरी

 

तमिलनाडु का सुंदर और प्रसिद्ध पर्वतीय जिला नीलगिरी, जो अपनी चाय बगानों, हरे-भरे पहाड़ों और पर्यटन के लिए देश-विदेश में जाना जाता है, अब एक गंभीर खतरे के कारण चर्चा में है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) ने हाल ही में जारी रिपोर्ट में नीलगिरी को हाई लैंडस्लाइड रिस्क ज़ोन (भूस्खलन उच्च जोखिम क्षेत्र) घोषित किया है। यह चेतावनी केवल एक वैज्ञानिक रिपोर्ट भर नहीं, बल्कि इस जिले के लाखों लोगों के जीवन और भविष्य से जुड़ा मुद्दा है।


रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

 

  • पूरे तमिलनाडु में 11,000 वर्ग किमी क्षेत्र का सर्वेक्षण किया गया।

 

  • इसमें से 8,000 वर्ग किमी लो रिस्क, 2,000 वर्ग किमी मीडियम रिस्क और लगभग 1,000 वर्ग किमी हाई रिस्क घोषित किए गए।

 

  • यह पूरा 1,000 वर्ग किमी क्षेत्र मुख्य रूप से नीलगिरी जिले में आता है।

 

  • नीलगिरी तमिलनाडु का एकमात्र जिला है जिसे GSI की प्रायोगिक अर्ली वॉर्निंग बुलेटिन में शामिल किया गया है।

 

  • राष्ट्रीय स्तर पर 19 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के करीब 4.3 लाख वर्ग किमी क्षेत्र का भूस्खलन संभाव्यता के आधार पर आकलन किया गया।

नीलगिरी का भूगोल और इतिहास

 

नीलगिरी का अर्थ हैनीले पहाड़। यह इलाका पश्चिमी घाट का हिस्सा है और समुद्र तल से लगभग 2,200 मीटर ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ का मौसम पूरे साल सुहावना रहता है, इसीलिए ब्रिटिश काल में इसेहिल स्टेशन कैपिटलकहा जाता था।

 

इतिहास में देखें तो 1820 के दशक में जब अंग्रेज यहाँ पहुँचे, तब से लेकर अब तक नीलगिरी तमिलनाडु का प्रमुख पर्यटन और कृषि केंद्र रहा है। ब्रिटिश अधिकारियों ने यहाँ सड़कों, रेलमार्ग और चाय बागानों का विकास किया, लेकिन इसी विकास ने पहाड़ियों को कमजोर भी किया।


भूस्खलन के वैज्ञानिक कारण
 

नीलगिरी में भूस्खलन के पीछे कई कारण हैं:

 

1. भूगर्भीय संरचनायहाँ की मिट्टी और चट्टानें ढलानों पर आसानी से खिसक जाती हैं।

 

 

2. अत्यधिक वर्षामानसून में 1,500 से 2,000 मिमी तक बारिश होती है। पानी जब मिट्टी में रिसता है तो उसकी पकड़ कमजोर हो जाती है।

 

 

3. वन कटाईचाय बागानों और शहरीकरण के लिए जंगल काटे गए, जिससे मिट्टी पकड़ने वाली जड़ें कम हो गईं।

 

 

4. निर्माण गतिविधियाँपहाड़ियों को काटकर सड़कें, होटल और मकान बनाए गए, जिससे प्राकृतिक संतुलन बिगड़ा।

 

 

5. भूकंपीय हलचलयह इलाका सिस्मिक ज़ोन-III में आता है, यानी यहाँ हल्के-फुल्के भूकंप भी आते रहते हैं।


नीलगिरी में पिछले हादसे

 

  • पिछले 50 सालों में नीलगिरी कई बार बड़ी आपदाओं का गवाह बना:

 

  • 1978: भारी बारिश से दर्जनों जगह भूस्खलन, सैकड़ों लोग बेघर।

 

  • 1993: कुन्नूर क्षेत्र में पहाड़ी खिसकने से 35 लोगों की मौत।

 

  • 2009: सबसे बड़ा हादसा, जिसमें करीब 40 लोग मारे गए और 2,000 से ज़्यादा परिवार प्रभावित हुए।

 

  • 2019: मूसलाधार बारिश से सड़कों और रेल मार्ग का संपर्क टूटा, करोड़ों का नुकसान।

 

  • 2021: लगातार बारिश से 50 से अधिक भूस्खलन दर्ज हुए, गाँवों को खाली कराना पड़ा।

 

 

हर साल औसतन 15–20 बड़े भूस्खलन दर्ज किए जाते हैं।


प्रभावित जनसंख्या और गाँव

 

  • नीलगिरी की आबादी लगभग 7.3 लाख है, जिनमें से ज़्यादातर लोग ऊटी, कुन्नूर और कोटागिरी कस्बों या चाय बागानों वाले गाँवों में रहते हैं।

 

  • अनुमान है कि करीब 1.5 लाख लोग सीधे तौर पर हाई रिस्क ज़ोन में बसे हुए हैं।

 

  • चाय बागानों में काम करने वाले मजदूर और आदिवासी समुदाय सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं।

 

  • कई गाँव मानसून के समय हफ्तों तक मुख्य शहरों से कट जाते हैं।

पर्यटन और चाय उद्योग पर असर

 

  • नीलगिरी की पहचान चाय बागानों और पर्यटन से है।

 

  • यहाँ से हर साल लाखों किलो चाय का निर्यात होता है। लेकिन भूस्खलन से बागान मिट्टी में दब जाते हैं और उत्पादन घट जाता है।

 

  • पर्यटन इंडस्ट्री सालाना करोड़ों कमाती है, लेकिन भूस्खलन के कारण सड़कें टूटने और होटल खाली होने से बड़ा नुकसान होता है।

 

  • मानसून सीज़न में पर्यटक संख्या 40–50% तक कम हो जाती है।

 

  • जलवायु परिवर्तन की भूमिका

 

  • विशेषज्ञों का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन ने खतरे को और बढ़ा दिया है।

 

  • पहले मानसून में बारिश फैली हुई मिलती थी, लेकिन अब अचानक कम समय में ज़्यादा बारिश (Cloudburst) होने लगी है।

 

  • 2020–2024 के बीच औसत बारिश में 15% तक वृद्धि दर्ज की गई।


  • तापमान में भी धीरे-धीरे 1.2°C तक बढ़ोतरी हुई है, जिससे मिट्टी की संरचना कमजोर हुई है।


सरकार और GSI की पहल

 

  • GSI ने नीलगिरी को अर्ली वॉर्निंग सिस्टम में शामिल किया है। SMS और अलर्ट जारी किए जाते हैं।

 

  • जिला प्रशासन हर मानसून से पहले हाई रिस्क ज़ोन की लिस्ट तैयार करता है।

 

  • तमिलनाडु सरकार ने ढलानों पर निर्माण पर रोक और आपदा प्रबंधन टीमों की तैनाती का आदेश दिया है।

 

  • ड्रोन सर्वे और सैटेलाइट इमेज से संवेदनशील जगहों पर नज़र रखी जा रही है।

 

 

 

अंतरराष्ट्रीय तुलना

 

  • दुनिया के कई पहाड़ी इलाके नीलगिरी जैसी समस्या से जूझ रहे हैं:

 

  • नेपाल और हिमालयी क्षेत्रयहाँ हर साल हजारों लोग लैंडस्लाइड से प्रभावित होते हैं।

 

  • जापानटाइफून और भारी बारिश के कारण हर साल सैकड़ों भूस्खलन।

 

  • इंडोनेशियाउष्णकटिबंधीय बारिश और कटाई से भूस्खलन सामान्य है।

इन देशों ने जियो-टेक्निकल इंजीनियरिंग, मजबूत जल निकासी और अर्ली वॉर्निंग सिस्टम से खतरे कम किए। नीलगिरी भी इनसे सीख सकता है।


स्थानीय लोगों की आवाज़

 

  • ऊटी निवासी मणिकम कहते हैं: “हर बारिश में हमें डर लगता है कि कहीं घर पर मिट्टी गिर जाए।

 

  • चाय बागान मजदूर लक्ष्मी बताती हैं: “बारिश में काम बंद हो जाता है, कई बार घर खाली करके राहत कैंप में रहना पड़ता है।

 

  • स्कूल जाने वाले बच्चों को अक्सर हफ्तों तक छुट्टी करनी पड़ती है क्योंकि सड़कें बंद हो जाती हैं।


अन्य भारतीय हिल स्टेशनों की तुलना

 

  • दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल) – यहाँ भी लैंडस्लाइड आम, सड़कें महीनों बंद रहती हैं।

 

  • हिमाचल (कुल्लू-मनाली, शिमला) – 2023 में भारी तबाही, होटल और सड़कें ढही।

 

  • उत्तराखंड (जोशीमठ) – धँसाव और लैंडस्लाइड की घटनाएँ चर्चा में।

इन इलाकों की तरह नीलगिरी में भी अनियोजित विकास बड़ा कारण है।


विशेषज्ञों के सुझाव

 

  • डॉ. शैलजा (जलवायु वैज्ञानिक): “भविष्य में cloudburst जैसी घटनाएँ बढ़ेंगी, हमें हिल प्लानिंग करनी होगी।

 

  • प्रो. रामकृष्णन (भू-विज्ञानी): “चाय बागानों को sustainable farming में बदलना होगा।

 

  • आपदा प्रबंधन अधिकारी: “अर्ली वॉर्निंग सिस्टम को और लोकल लेवल तक पहुँचाना चाहिए।



आगे की राह

 

नीलगिरी को बचाने के लिए ज़रूरी है:

 

1. सस्टेनेबल डेवलपमेंटपहाड़ियों पर निर्माण पर सख्ती।

 

 

2. वनीकरण अभियानबड़े पैमाने पर पेड़ लगाना।

 

 

3. मजबूत ड्रेनेज सिस्टमबारिश का पानी आसानी से बह सके।

 

 

4. स्थानीय प्रशिक्षणगाँव वालों को आपदा प्रबंधन का प्रशिक्षण।

 

 

5. टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल – AI और सैटेलाइट से खतरे की भविष्यवाणी।



निष्कर्ष

 

नीलगिरी अपनी प्राकृतिक सुंदरता और आर्थिक महत्व के बावजूद आज एक आपदा संवेदनशील क्षेत्र बन चुका है।

GSI की चेतावनी यह बताती है कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में नीलगिरी में नुकसान और बढ़ेगा।

 

सरकार, वैज्ञानिक, स्थानीय समुदाय और पर्यटन उद्योग अगर मिलकर काम करें तो इस क्षेत्र को सुरक्षित बनाया जा सकता है।

 

 

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