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जीएसटी सुधार: दो-स्तरीय दर प्रणाली को मंजूरी, 22 सितम्बर से लागू
1. भूमिका (Introduction)
भारत की टैक्स व्यवस्था में वस्तु एवं सेवा कर (GST) को सबसे बड़े सुधारों में से एक माना जाता है। 2017 में लागू होने के बाद से GST ने न सिर्फ़ टैक्सेशन के ढाँचे को सरल बनाने की कोशिश की, बल्कि इसे एकीकृत राष्ट्रीय बाज़ार बनाने का रास्ता भी खोला। हालांकि, समय-समय पर यह सवाल उठता रहा कि क्या मौजूदा GST ढाँचा वास्तव में सरल और पारदर्शी है।
इसी पृष्ठभूमि में हाल ही में सरकार ने एक ऐतिहासिक घोषणा की है—GST 2.0। इसमें पुरानी जटिल संरचना को कम करके सिर्फ़ दो मुख्य दरें रखी गई हैं: 5% और 18%, जबकि कुछ खास वस्तुओं/सेवाओं को 0% और 40% विशेष श्रेणी में रखा गया है। यह फैसला 22 सितम्बर से लागू होगा।
यह रिपोर्ट बताएगी कि आखिर इस सुधार से आम जनता, व्यापारियों, उद्योगों और राजनीति पर क्या असर पड़ेगा। साथ ही विस्तार से देखेंगे कि कौन-से आइटम किस स्लैब से बदलकर किसमें गए हैं, और कौन-से महँगे या सस्ते होंगे।
2. अब तक का GST सिस्टम और चुनौतियाँ
GST लागू होने से पहले भारत में केंद्रीय उत्पाद शुल्क, सेवा कर, वैट, एंट्री टैक्स, ऑक्ट्रॉय जैसी कई परतों वाला टैक्स ढाँचा था। इससे न सिर्फ़ भ्रम की स्थिति पैदा होती थी बल्कि व्यवसायियों पर अनुपालन (compliance) का बोझ भी बढ़ता था।
- GST आने के बाद हालांकि कई सुधार हुए, लेकिन 0%, 5%, 12%, 18% और 28%—कुल मिलाकर पाँच प्रमुख स्लैब होने से एक बार फिर जटिलता बनी रही।
- 12% और 18% स्लैब के बीच अंतर को लेकर अक्सर विवाद होता था।
- छोटे व्यवसायी समझ नहीं पाते थे कि उनके उत्पाद पर कौन-सी दर लागू होगी।
- कई बार कानूनी लड़ाइयाँ तक हुईं क्योंकि एक ही प्रोडक्ट को अलग-अलग राज्यों में अलग टैक्स दरों से देखा जाता था।
- इसके अलावा, उद्योग संगठन लगातार यह मांग उठा रहे थे कि दरों की संख्या घटाई जाए ताकि टैक्स सिस्टम पारदर्शी और आसान हो सके।
3. नए सुधार की ज़रूरत क्यों पड़ी
सरकार के सामने तीन बड़ी चुनौतियाँ थीं:
1. जटिलता घटाना – आम जनता और छोटे व्यापारी दोनों के लिए टैक्स समझना आसान हो।
2. राजस्व स्थिरता – टैक्स वसूली में कोई कमी न आए, बल्कि अनुपालन बढ़े।
3. मांग बढ़ाना – कोविड और वैश्विक मंदी के बाद घरेलू खपत को बढ़ावा देना।
इसीलिए GST काउंसिल ने फैसला किया कि अब पाँच की जगह सिर्फ़ दो मुख्य दरें (5% और 18%) रहेंगी। जबकि जीवनरक्षक वस्तुओं को 0% और विलासिता/हानिकारक वस्तुओं को 40% स्लैब में डाला जाएगा।
4. दो-स्तरीय दर प्रणाली क्या है
अब नया ढाँचा इस प्रकार होगा:
- 0% स्लैब (मुक्त)
जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा, जीवनरक्षक दवाएँ, बेसिक फूड आइटम (जैसे रोटी, दूध, पनीर), शिक्षा से जुड़ी सामग्री (कॉपी, पेंसिल, क्रेयॉन आदि)।
- 5% स्लैब (जरूरी और रोजमर्रा की वस्तुएँ)
टूथपेस्ट, साबुन, शैम्पू, हेयर ऑयल, नाश्ते के सामान (नमकीन, मिक्सचर, चॉकलेट, नूडल्स), कृषि उपकरण, थर्मामीटर, चश्मे आदि।
- 18% स्लैब (साधारण/मुख्य टैक्स दर)
इलेक्ट्रॉनिक्स (AC, टीवी, वॉशिंग मशीन), सीमेंट, छोटी कारें, मोटरसाइकिलें, तीन-पहिया वाहन।
- 40% स्लैब (लक्ज़री/हानिकारक वस्तुएँ)
बड़ी/लक्ज़री कारें, 350cc से बड़ी बाइक, हेलीकॉप्टर-यॉट, सिगरेट, गुटखा, तंबाकू, शीतल पेय आदि।
5. कौन-से आइटम सस्ते हुए और कौन-से महँगे
सस्ते हुए (कीमत घटेगी):
- रोजमर्रा की चीज़ें: साबुन, शैम्पू, टूथपेस्ट, हेयर ऑयल, टूथब्रश
- खाने-पीने के सामान: घी, बटर, नाश्ता, कॉफी, चॉकलेट, इंस्टेंट नूडल्स
- चिकित्सा सामग्री: थर्मामीटर, ग्लूकोमीटर, डायग्नोस्टिक किट्स
- कृषि उपकरण: ट्रैक्टर, सिंचाई मशीनें
- होटल सेवाएँ (₹7500 से कम)
- महँगे हुए (कीमत बढ़ेगी):
बड़ी गाड़ियाँ और लक्ज़री वाहन
- 350cc से बड़ी बाइक
- निजी हेलीकॉप्टर और यॉट
- सिगरेट, गुटखा, तंबाकू उत्पाद
- कोल्ड ड्रिंक, शुगरी बेवरेज
👉 यानी इस सुधार का सीधा लाभ मध्यम वर्ग और गरीब तबके को मिलेगा, जबकि नुकसान मुख्यतः लक्ज़री और हानिकारक उत्पादों पर खर्च करने वालों को होगा।
6. व्यवसायों पर असर
- छोटे व्यापारियों और MSME (Micro, Small and Medium Enterprises) के लिए यह सुधार राहत लेकर आएगा। अब उन्हें यह उलझन नहीं होगी कि उनका उत्पाद 12% पर है या 18% पर।
- सरल अनुपालन: दो मुख्य दरों से फाइलिंग आसान होगी।
- कम विवाद: टैक्स की गलत व्याख्या से जुड़े केस कम होंगे।
- मांग में बढ़ोतरी: रोजमर्रा की वस्तुएँ सस्ती होने से खपत बढ़ेगी और बिक्री तेज़ होगी।
- हालांकि, कुछ क्षेत्रों में (जैसे सीमेंट या ऑटोमोबाइल) अभी भी टैक्स अपेक्षाकृत ऊँचा है, इसलिए उद्योग संगठन आगे और राहत की मांग कर सकते हैं।
7. उपभोक्ताओं पर असर
- आम जनता पर इसका सबसे सीधा असर दिखेगा।
- घरेलू बजट में राहत—साबुन, शैम्पू, टूथपेस्ट जैसे उत्पाद सस्ते होंगे।
- स्वास्थ्य सुरक्षा—दवाइयों और बीमा सेवाओं पर GST हटना बड़ी राहत है।
- महँगाई नियंत्रण—सरकार का लक्ष्य है कि उपभोक्ता खर्च बढ़े और अर्थव्यवस्था में गति आए।
- लेकिन, जो लोग लक्ज़री कार या तंबाकू पर खर्च करते हैं, उनके लिए जेब ढीली करनी पड़ेगी।
8. विशेषज्ञों की राय (Experts’ Opinions)
- GST 2.0 को लेकर अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने अपनी राय दी है।
- अर्थशास्त्री: उनका मानना है कि दरों की संख्या घटने से टैक्स प्रणाली सरल होगी और इससे सरकार का टैक्स कलेक्शन भी स्थिर रहेगा। चूंकि रोज़मर्रा की वस्तुएँ सस्ती हो रही हैं, खपत बढ़ने से मांग और उत्पादन दोनों में तेजी आएगी।
- उद्योग संगठन: CII और FICCI जैसे प्रमुख संगठन इसे सकारात्मक कदम बता रहे हैं। उनका कहना है कि MSME सेक्टर को सबसे ज्यादा राहत मिलेगी।
- टैक्स विशेषज्ञ: उनका मानना है कि इस सुधार से लिटिगेशन (विवादों) में कमी आएगी क्योंकि अब 12% और 18% का अंतर ही खत्म हो गया है।
- कृषि क्षेत्र: किसानों और कृषि आधारित उद्योगों के लिए ट्रैक्टर व सिंचाई उपकरणों पर टैक्स घटाना बड़ी राहत है।
- हालांकि कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि 40% स्लैब बहुत ऊँचा है और इससे ब्लैक मार्केटिंग या टैक्स चोरी बढ़ सकती है।
9. सरकार की उम्मीदें
सरकार ने इस सुधार से कई उम्मीदें जताई हैं:
1. राजस्व वृद्धि: सरकार को भरोसा है कि खपत बढ़ने से टैक्स कलेक्शन में गिरावट नहीं होगी।
2. अनुपालन में सुधार: छोटे व्यापारी आसानी से GST भर सकेंगे, जिससे टैक्स बेस और बढ़ेगा।
3. महँगाई पर नियंत्रण: रोज़मर्रा की चीज़ें सस्ती करने से आम जनता को राहत मिलेगी और महँगाई का दबाव घटेगा।
4. राजनीतिक फायदा: मध्यम वर्ग और गरीब वर्ग को सीधे लाभ मिलने से सरकार को चुनावी फायदा भी मिल सकता है।
10. संभावित चुनौतियाँ
- हालांकि यह सुधार ऐतिहासिक है, लेकिन चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं:
- राजस्व असंतुलन: 12% और 18% स्लैब खत्म होने से कुछ वस्तुओं पर टैक्स घटा है। अगर खपत उम्मीद से नहीं बढ़ी, तो सरकार के राजस्व पर असर पड़ सकता है।
- टेक्नोलॉजी और इन्फ्रास्ट्रक्चर: अभी भी छोटे कस्बों और गाँवों में डिजिटल भुगतान और GST फाइलिंग आसान नहीं है।
- राज्यों की सहमति: कई बार राज्यों और केंद्र में राजस्व बंटवारे को लेकर मतभेद होते हैं।
- उच्च 40% स्लैब का असर: महँगी वस्तुओं पर टैक्स इतना ज़्यादा है कि उससे टैक्स चोरी या नकली उत्पादों की संभावना बढ़ सकती है।
11. अंतरराष्ट्रीय तुलना
- भारत में GST का नया ढाँचा दुनिया की अन्य अर्थव्यवस्थाओं से किस हद तक मेल खाता है?
- ऑस्ट्रेलिया: वहाँ केवल एक ही GST दर (10%) है। यह बेहद सरल और पारदर्शी है।
- कनाडा: वहाँ फेडरल और प्रांतीय (State) दोनों स्तर पर GST/HST लागू होता है, दरें अलग-अलग हैं।
- यूरोप: अधिकांश यूरोपीय देशों में VAT है और वहाँ भी एक बेसिक दर और कुछ रियायती दरें होती हैं।
- सिंगापुर: वहाँ केवल 9% GST है।
भारत अभी भी कई दरों का इस्तेमाल कर रहा है, लेकिन 5% और 18% तक सीमित करना एक बड़ा कदम है। विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले समय में इसे और सरल किया जा सकता है।
12. भविष्य की दिशा
- GST 2.0 को एक संक्रमण काल के रूप में देखा जा रहा है। संभावना है कि आने वाले वर्षों में:
- दरें और घटाकर सिर्फ़ एक ही स्लैब (जैसे 12–15%) तक लाई जा सकती हैं।
- डिजिटल इकोनॉमी के बढ़ने के साथ ई-इनवॉइसिंग और ऑटोमैटिक टैक्स कलेक्शन और मज़बूत होंगे।
- राज्यों को अधिक राजस्व भागीदारी दी जा सकती है ताकि केंद्र-राज्य टकराव कम हो।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को निवेश आकर्षित करने में फायदा होगा क्योंकि टैक्स सिस्टम सरल होना निवेशकों को आकर्षित करता है।
13. राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
GST 2.0 सिर्फ़ आर्थिक सुधार नहीं है, बल्कि इसके राजनीतिक और सामाजिक मायने भी गहरे हैं।
राजनीतिक प्रभाव:
चुनावी सालों में सरकार को मध्यम वर्ग और गरीब तबके का समर्थन मिल सकता है।
विपक्ष यह सवाल उठा सकता है कि 40% टैक्स बहुत ज्यादा है और इससे जनता पर बोझ बढ़ेगा।
यह कदम सरकार की “मध्यम वर्ग समर्थक” छवि को और मजबूत कर सकता है।
सामाजिक प्रभाव:
रोज़मर्रा की वस्तुएँ सस्ती होने से गरीब और मध्यम वर्ग के जीवन स्तर में सुधार होगा।
स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र पर टैक्स घटाना एक सकारात्मक सामाजिक संदेश देता है।
लेकिन तंबाकू और शराब जैसी वस्तुओं पर टैक्स बढ़ने से गरीब वर्ग में सामाजिक बदलाव की संभावना है (लोग कम खरीद सकते हैं)।
14. निष्कर्ष
GST 2.0 भारत के टैक्स इतिहास में एक ऐतिहासिक कदम है।
रोज़मर्रा की वस्तुओं पर टैक्स घटाकर आम जनता को सीधी राहत दी गई है।
व्यवसायियों और उद्योगों के लिए अनुपालन आसान हुआ है।
सरकार ने एक राजनीतिक और सामाजिक संदेश भी दिया है कि सुधार सिर्फ़ अमीरों के लिए नहीं, बल्कि गरीब और मध्यम वर्ग के लिए भी है।
हालांकि चुनौतियाँ हैं—राजस्व संतुलन, 40% स्लैब का असर और राज्यों की सहमति। लेकिन अगर सरकार इन चुनौतियों से निपट पाती है, तो यह सुधार भारत की अर्थव्यवस्था को नई रफ्तार और स्थिरता दे सकता है।
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