जीएसटी परिषद की बैठक 3-4 सितंबर को, महंगाई घटने और कारोबार को बढ़ावा मिलने की उम्मीद
नई
दिल्ली।
देश
की आम जनता के
लिए राहत की बड़ी खबर
सामने आ सकती है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में
3 और 4 सितंबर को होने वाली
गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) परिषद की बैठक में
खाद्य और वस्त्र वस्तुओं
को 5 प्रतिशत टैक्स स्लैब में लाने पर चर्चा होगी।
अगर यह प्रस्ताव पास
होता है तो रोज़मर्रा
की ज़रूरतों से जुड़ी वस्तुएं
और कपड़े सस्ते हो जाएंगे।
जीएसटी का इतिहास और पृष्ठभूमि
भारत
में 1 जुलाई 2017 को जीएसटी लागू
किया गया था। इसे देश के टैक्स ढांचे
में सबसे बड़ा सुधार माना गया। पहले अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग वैट, एंट्री टैक्स, एक्साइज और सर्विस टैक्स
वसूला जाता था। जीएसटी के आने से
इन सभी को खत्म कर
दिया गया और एक समान
कर व्यवस्था लागू की गई।
जीएसटी का मूल उद्देश्य था—
1. वन
नेशन, वन टैक्स (पूरे
देश में एक जैसी टैक्स
दरें)।
2. टैक्स
चोरी रोकना।
3. व्यापार
को आसान बनाना।
4. उपभोक्ताओं
को राहत देना।
हालांकि,
सात साल बाद भी टैक्स स्लैब
की जटिलताएं बनी हुई हैं। अभी 5%, 12%, 18% और 28% के चार प्रमुख
स्लैब हैं। कई बार यह
तय करने में विवाद होता है कि किस
वस्तु पर कौन-सी
दर लागू हो।
मौजूदा स्थिति: खाद्य और वस्त्र सेक्टर
खाद्य वस्तुएं
अनाज,
आटा, दूध और अंडे जैसी
कई चीज़ें टैक्स फ्री हैं।
पैकेज्ड
खाद्य वस्तुओं पर 5% से 12% तक टैक्स लगता
है।
कुछ
प्रोसेस्ड फूड पर 18% जीएसटी भी वसूला जाता
है।
वस्त्र क्षेत्र
1,000 रुपये
से कम कीमत वाले
कपड़ों पर 5% टैक्स लगता है।
महंगे
कपड़ों और ब्रांडेड गारमेंट्स
पर 12% टैक्स है।
टेक्सटाइल
सेक्टर बार-बार टैक्स दर घटाने की
मांग करता रहा है।
उपभोक्ताओं को क्या फायदा होगा?
अगर
सभी खाद्य और वस्त्र वस्तुएं
5% स्लैब में आ जाती हैं
तो उपभोक्ताओं की जेब पर
सीधा असर पड़ेगा।
राशन
सस्ता होगा: दाल, तेल, चीनी, मसाले, पैकेज्ड स्नैक्स और प्रोसेस्ड फूड
की कीमतें घटेंगी।
कपड़ों
की कीमतें कम होंगी: खासकर
मिडिल क्लास और गरीब तबके
को राहत मिलेगी।
त्योहारों
पर बचत: दिवाली, दशहरा और शादी सीजन
में कपड़ों व मिठाइयों पर
खर्च कम होगा।
दिल्ली की गृहिणी सुनीता वर्मा कहती हैं, “हर महीने राशन और बच्चों के कपड़ों पर 6-7 हजार रुपये खर्च हो जाते हैं। अगर टैक्स घट जाएगा तो कम से कम 500-700 रुपये की बचत होगी।
कारोबारियों की प्रतिक्रिया
वस्त्र उद्योग
वस्त्र
उद्योग भारत में 4.5 करोड़ लोगों को रोजगार देता
है। यह क्षेत्र देश
की जीडीपी में लगभग 2% का योगदान करता
है और निर्यात का
भी बड़ा हिस्सा है।
सूरत
के व्यापारी संजय अग्रवाल का कहना है,
“कपड़ा व्यापार 12% टैक्स से दबा हुआ
था। ग्राहक महंगे कपड़े नहीं खरीद रहे थे। अगर टैक्स 5% होगा तो बिक्री बढ़ेगी
और रोजगार भी पैदा होंगे।”
खाद्य उद्योग
लुधियाना
के पैकेज्ड फूड कारोबारी मोहित जैन बताते हैं, “प्रोसेस्ड फूड पर ज्यादा टैक्स
होने से ग्राहक सस्ता
विकल्प चुनते हैं। टैक्स घटने पर मांग बढ़ेगी
और उद्योग को गति मिलेगी।”
विशेषज्ञों का विश्लेषण
महंगाई पर असर
भारत
में खुदरा महंगाई दर फिलहाल 6% के
करीब है, जबकि रिज़र्व बैंक की संतोषजनक सीमा
2-6% है। खाद्य महंगाई इस आंकड़े को
और ऊपर ले जाती है।
अर्थशास्त्री
डॉ. सीमा गुप्ता कहती हैं, “जरूरी वस्तुओं पर टैक्स कम
करने से महंगाई पर
सीधा असर पड़ेगा। यह कदम ग्रामीण
उपभोक्ताओं के लिए भी
बेहद राहत भरा होगा।”
टैक्स विवाद कम होंगे
चार्टर्ड
अकाउंटेंट अंजलि मेहरा के मुताबिक, “अभी
कई बार यह तय करने
में विवाद होता है कि कोई
वस्तु 12% में आएगी या 18% में। सभी को 5% में लाना प्रशासनिक बोझ घटा देगा।”
खपत और जीडीपी में बढ़ोतरी
रिटेल
विशेषज्ञ सुनीता कपूर कहती हैं, “जब आम आदमी
की जेब में बचत होगी तो वह ज्यादा
खर्च करेगा। इससे रिटेल और एफएमसीजी सेक्टर
को बढ़ावा मिलेगा और जीडीपी पर
सकारात्मक असर होगा।”
अन्य प्रस्तावों पर भी चर्चा
जीएसटी परिषद सिर्फ खाद्य और वस्त्र तक सीमित नहीं रहेगी। चर्चा इन क्षेत्रों पर भी हो सकती है:
1. सीमेंट:
अभी 28% टैक्स है। इसे घटाने से मकान सस्ते
हो सकते हैं।
2. सैलून
सेवाएं: 18% टैक्स के कारण महंगी
हैं। टैक्स घटने से छोटे शहरों
में भी सैलून सेवाओं
की पहुंच बढ़ेगी।
3. बीमा
क्षेत्र: प्रीमियम पर टैक्स कम
होने से लोग ज्यादा
पॉलिसियां लेंगे और सामाजिक सुरक्षा
मजबूत होगी।
सरकार
की चुनौतियाँ
हालांकि
जनता को राहत देने
वाला यह कदम सरकार
के लिए राजस्व की चुनौती खड़ी
कर सकता है।
जीएसटी
कलेक्शन हर महीने औसतन
1.6 लाख करोड़ रुपये होता है।
अगर
टैक्स दरें घटती हैं तो सालाना 50,000 करोड़
रुपये से ज्यादा का
घाटा हो सकता है।
पहले
से ही सरकार पर
राजकोषीय घाटा नियंत्रित करने का दबाव है।
विपक्ष और राजनीति
विपक्ष
का आरोप है कि सरकार
यह कदम चुनावों को ध्यान में
रखकर उठा रही है।
कांग्रेस
प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला का कहना है,
“सरकार को जनता को
राहत देने की याद सिर्फ
चुनाव से पहले आती
है। अगर जीएसटी इतना ही आसान था
तो पिछले सात साल क्यों इंतजार किया?”
वहीं
भाजपा प्रवक्ता का कहना है,
“यह पूरी तरह आर्थिक सुधार है। इससे उपभोक्ताओं और कारोबारियों दोनों
को लाभ होगा। राजनीति से इसका कोई
लेना-देना नहीं है।”
अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
यूरोप:
जर्मनी और फ्रांस ने
कोविड के समय खाद्य
और दवाओं पर टैक्स घटा
दिया था।
एशिया:
मलेशिया में कपड़ों पर सिर्फ 6% टैक्स
है।
अमेरिका:
कई राज्यों में खाद्य वस्तुएं टैक्स फ्री हैं।
भारत
भी अब इसी दिशा
में कदम बढ़ा रहा है ताकि घरेलू
खपत और उद्योग दोनों
को बढ़ावा मिल सके।
ग्रामीण बनाम शहरी असर
ग्रामीण
भारत: जहां आय कम है,
वहां खाद्य और वस्त्र सस्ते
होने से बड़ी राहत
मिलेगी। ग्रामीण खपत बढ़ेगी और स्थानीय बाजार
मजबूत होंगे।
शहरी
भारत: मिडिल क्लास को बचत होगी,
जिससे वे शिक्षा, स्वास्थ्य
और मनोरंजन पर ज्यादा खर्च
कर पाएंगे।
भविष्य की संभावनाएँ
अगर
प्रस्ताव पास हो जाता है
तो अगले 5-10 साल में यह बदलाव दिख
सकते हैं:
महंगाई
पर नियंत्रण।
छोटे
और मध्यम उद्योगों को बढ़ावा।
निर्यात
में वृद्धि।
टैक्स
चोरी पर अंकुश।
भारत
के टैक्स ढांचे की विश्व स्तर
पर सकारात्मक छवि।
निष्कर्ष
जीएसटी परिषद की आगामी बैठक सिर्फ एक नियमित बैठक नहीं है, बल्कि यह भारतीय टैक्स प्रणाली के भविष्य का अहमपड़ाव हो सकती है। खाद्य और वस्त्र वस्तुओं को 5% टैक्स स्लैब में लाने का प्रस्ताव जनता की जेब को राहत देगा, उद्योगों को नई ऊर्जा देगा और महंगाई को नियंत्रित करने में मदद करेगा।
हालांकि,
सरकार को राजस्व की
चुनौती का सामना करना
होगा। लेकिन दीर्घकाल में यह फैसला न
सिर्फ उपभोक्ताओं बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी
ऐतिहासिक साबित हो सकता है।
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