“ट्रंप–मोदी रिश्तों की कहानी: पाँच मोड़ों पर दोस्ती से दूरी तक”

 




नई दिल्ली।

भारत और अमेरिका दुनिया की दो सबसे बड़ी लोकतांत्रिक शक्तियाँ हैं। दोनों देशों के बीच संबंध ऐतिहासिक रूप से उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं, लेकिन बीते एक दशक में जिस रिश्ते ने सबसे अधिक सुर्खियाँ बटोरीं, वह था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का। दोनों नेताओं की दोस्ती ने कभी कूटनीति को उत्सव का रूप दिया, तो कभी राष्ट्रीय हितों के टकराव ने इस मित्रता में खटास ला दी।


2019 का “Howdy Modi” कार्यक्रम और 2020 का “Namaste Trump” आयोजन आज भी उन क्षणों के रूप में याद किए जाते हैं, जब ऐसा लगा कि भारतअमेरिका संबंध अपने स्वर्णिम दौर में प्रवेश कर चुके हैं। लेकिन कुछ ही वर्षों में हालात ऐसे बने कि इस दोस्ती की नींव दरारों से भर गई। आखिर क्या हुआ कि जो रिश्ता कभी मिसाल माना जाता था, वह धीरे-धीरे ठंडा पड़ गया?

 

इस विस्तृत रिपोर्ट में हम देखेंगे कि कैसे पाँच बड़ी घटनाओं ने मोदीट्रंप की निकटता को बदलकर दूरी में तब्दील कर दिया और इसका भारतअमेरिका संबंधों पर क्या असर पड़ा।

 

सुनहरी शुरुआत: “Howdy Modi” और “Namaste Trump”


नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप दोनों ही अपनी-अपनी राजनीति मेंमज़बूत नेताकी छवि बनाने वाले व्यक्तित्व थे। ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद जब दोनों नेताओं की मुलाकातें शुरू हुईं तो उनमें समानताएँ साफ झलकने लगीं।

 

2019 में ह्यूस्टन (अमेरिका) में हुआ Howdy Modi कार्यक्रम उस दोस्ती का पहला बड़ा प्रतीक बना। अमेरिकी धरती पर 50,000 से ज़्यादा भारतीयों की भीड़ ने मोदी का स्वागत किया और जब ट्रंप स्वयं इस आयोजन में शामिल हुए, तो दोनों नेताओं ने खुले मंच से एक-दूसरे की तारीफ़ की। मोदी ने ट्रंप कोभारत का सच्चा मित्रकहा, वहीं ट्रंप ने भी भारतीय समुदाय की ताक़त को सराहा।

 

2020 की शुरुआत में अहमदाबाद में हुआ Namaste Trump इससे भी अधिक भव्य था। मोटेरा स्टेडियम में लाखों लोग इकट्ठा हुए। दोनों नेताओं ने साथ रैली की और दोस्ती का ऐसा प्रदर्शन किया, जैसा शायद पहले कभी नहीं हुआ था। यह वह दौर था, जब दुनिया मान रही थी कि मोदीट्रंप की साझेदारी भारतअमेरिका रिश्तों को नई ऊँचाइयों तक ले जाएगी।

 

लेकिन वास्तविक राजनीति केवल दिखावे पर नहीं टिकती। आने वाले महीनों में कई ऐसे मुद्दे सामने आए, जिन्होंने इस चमकदार दोस्ती को धीरे-धीरे फीका कर दिया।

पाँच घटनाएँ जिनसे दरा आई


1. व्यापार युद्ध और GSP का अंत

 

ट्रंप कीअमेरिका फर्स्टनीति का सीधा असर भारत पर भी पड़ा। उन्होंने बार-बार कहा कि भारत अमेरिकी उत्पादों परउच्च टैरिफलगाता है। 2019 में ट्रंप प्रशासन ने भारत को GSP (Generalized System of Preferences) प्रोग्राम से बाहर कर दिया, जिसके तहत भारत को हज़ारों करोड़ रुपये का लाभ मिल रहा था।

 

इस फैसले से भारतीय निर्यातकों को बड़ा झटका लगा। भारत ने भी प्रतिक्रिया में अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क बढ़ा दिया। दोनों देशों के बीचट्रेड वॉरजैसे हालात बनने लगे। यही वह पहला बड़ा मोड़ था, जब दोस्ती की चमक पर आर्थिक तनाव की धुंध छाने लगी।


2. एच-1बी वीज़ा और भारतीय पेशेवरों पर सख्ती

 

भारतीय आईटी सेक्टर के लाखों पेशेवर अमेरिका में काम करते हैं। इनके लिए एच-1बी वीज़ा बेहद महत्वपूर्ण है। लेकिन ट्रंप प्रशासन ने इस वीज़ा पर कठोर शर्तें लागू कर दीं।

 

कई भारतीय परिवार प्रभावित हुए और अमेरिकी कंपनियों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। भारत सरकार ने अपनी चिंता जताई, लेकिन ट्रंप अपनेअमेरिकियों के लिए नौकरियाँ बचानेवाले वादे से पीछे नहीं हटे। यह मुद्दा भारत के मध्यम वर्ग के लिए बेहद संवेदनशील था और इससे मोदीट्रंप रिश्तों की लोकप्रियता पर असर पड़ा।

3. रक्षा समझौते और रूस से S-400 की खरीद
 

भारत और अमेरिका रक्षा सहयोग को लेकर लगातार आगे बढ़ रहे थे। लेकिन 2018 में भारत ने रूस से S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने का निर्णय लिया। ट्रंप प्रशासन ने इसका कड़ा विरोध किया और यहाँ तक चेतावनी दी कि भारत पर अमेरिकी प्रतिबंध (CAATSA कानून के तहत) लगाए जा सकते हैं।

 

भारत ने साफ कहा कि उसकी रणनीतिक ज़रूरतें स्वतंत्र हैं और वह किसी दबाव में नहीं आएगा। यह रुख अमेरिका को नागवार गुज़रा। यह मुद्दा दोनों नेताओं कीरणनीतिक साझेदारीपर प्रश्नचिह्न लगाने लगा।

 

4. कोरोना महामारी और वैक्सीन कूटनीति

2020 में जब कोरोना महामारी फैली, तो शुरुआत में भारत ने अमेरिका को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की सप्लाई की। ट्रंप ने सार्वजनिक रूप से मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा कि भारत ने उनकी मदद की है।

 

लेकिन जब महामारी बढ़ी, तो अमेरिका ने वैक्सीन और उसके कच्चे माल के निर्यात पर पाबंदी लगा दी। भारत में इसे नकारात्मक रूप से देखा गया किमुश्किल समय में दोस्त मददगार नहीं निकला।इस घटना ने दोनों देशों की दोस्ती को ठंडा कर दिया।

5. अमेरिकी चुनाव और कूटनीतिक असमंजस

 

2020 के अमेरिकी चुनाव के समय Howdy Modi कार्यक्रम में मोदी का यह कथन—“अबकी बार ट्रंप सरकार”—बहुत चर्चा में आया। इसे अमेरिकी राजनीति में हस्तक्षेप जैसा माना गया।

 

जब चुनाव में ट्रंप हार गए और जो बाइडेन राष्ट्रपति बने, तो भारत ने तुरंत उन्हें बधाई देकर संबंध सुधारने की कोशिश की। ट्रंप समर्थक खेमे को यह बात खटकी। इस घटना ने मोदीट्रंप रिश्तों में आख़िरी कील ठोक दी।

भारतअमेरिका रिश्तों पर प्रभाव

इन घटनाओं के बावजूद भारत और अमेरिका के रिश्ते पूरी तरह नहीं टूटे। बल्कि संस्थागत स्तर पर दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग, क्वाड गठबंधन, तकनीकी समझौते और व्यापार जारी रहे।

 

लेकिन यह साफ हो गया कि दोस्ताना व्यक्तिगत रिश्ते हमेशा देशों के बीच स्थायी भरोसे की गारंटी नहीं होते। मोदी और ट्रंप ने अपने राजनीतिक फ़ायदे के लिए एक-दूसरे का उपयोग किया, लेकिन जब राष्ट्रीय हित टकराए, तो व्यक्तिगत दोस्ती भी दरारों से भर गई।

विशेषज्ञों की राय

 

अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि मोदीट्रंप रिश्ता "व्यक्तिगत करिश्मे" पर टिका था, जबकि स्थायी कूटनीति संस्थागत ढांचे पर निर्भर करती है।

 

कुछ विश्लेषकों के अनुसार, “Howdy Modi” जैसे आयोजनों में भारत ने अमेरिकी राजनीति में ज़रूरत से ज़्यादा दखल दिया।

 

अन्य विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रंप की अप्रत्याशित नीतियाँ भारत के लिए भरोसेमंद नहीं थीं।

 

वहीं एक राय यह भी है कि इस दोस्ती ने भारतअमेरिका संबंधों को जनता के बीच लोकप्रिय बना दिया, भले ही नीतिगत स्तर पर मतभेद रहे।

निष्कर्ष

 

मोदी और ट्रंप की दोस्ती कभीलोकप्रियता का उत्सवबन गई थी। लाखों की भीड़, गगनभेदी नारों और भव्य आयोजनों ने इसे ऐतिहासिक बना दिया। लेकिन पाँच घटनाओं ने यह साबित कर दिया कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति केवल मंच की मुस्कान और हाथ मिलाने तक सीमित नहीं है।

 

राष्ट्रीय हित जब टकराते हैं तो व्यक्तिगत रिश्ते भी दरक जाते हैं। भारत और अमेरिका आज भी एक-दूसरे के रणनीतिक साझेदार हैं, लेकिन मोदीट्रंप की दोस्ती इतिहास के पन्नों में अब एक उदाहरण हैकैसे पाँच मोड़ों ने नज़दीकी को दूरी में बदल दिया।




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